Lachesis 200 Uses in Hindi | लैकेसिस 200 उपयोग और लक्षण
लैकेसिस 200 होम्योपैथिक मेडिसिन का उपयोग उन रोगियों के लक्षणों को ठीक करने के लिए किया जाता है जो बहुत ही उदास और निराश रहते हैं, विशेष रूप से सोकर उठने के बाद या फिर जब मानसिक परेशानियां अधिक होती है तब। लैकेसिस मेडिसिन सांप के जहरों के समान ही रक्त-विघटन करती है और उसे अधिक तरल कर देती है। शरीर में खून की जहरीली अवस्था उत्पन्न होने तथा डिफ्थीरिया और अन्य रोग की अवस्थाओं को ठीक करने के लिए इस दवा का अधिक उपयोग किया जाता है।
Lachesis 200 Uses in Hindi
यदि किसी रोगी को कई प्रकार के रोग होने की अवस्थाओं में जैसे शरीर का खून दूषित होना और डिफ्थीरिया रोग होना। इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही पंखें की हवा अच्छी लगती हो लेकिन पंखा दूर रखकर धीरे-धीरे पंखा चलाने को कहना, इसका और एक विशेष लक्षण है। मुंह या नाक के पास कोई भी चीज आने से परेशानी अधिक होती है या दम घुटने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
ऐसे रोगी जो अधिक दुबले-पतले होते हैं जिनकी शरीर की हडि्डयां दिखाई देती हैं और जो कई प्रकार के रोग से पीड़ित होने के कारण शारीरिक रूप से और मानसिक दृष्टि से अधिक कमजोर हो चुके हैं। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए तथा शरीर पर मांस की वृद्धि बढ़ाने के लिए लैकेसिस 200 दवा का उपयोग करना चाहिए। यह होम्योपैथिक मेडिसिन उन लड़कियों के लिए भी विशेष उपयोगी है जो बचपन से जवानी की ओर कदम बढ़ाती हैं उस समय में रोग ग्रस्त हो जाती है अर्थात वयसंधि काल के समय में लड़कियों के होने वाले रोगों को ठीक करने के लिए उपयोगी है।
विभिन्न लक्षणों और रोगों में लैकेसिस 200 के उपयोग – Lachesis 200 Uses in Hindi
Lachesis 200 के लिए मन से सम्बन्धित लक्षण :- अधिक बोलने का मन करता है तथा इसके साथ ही शरीर का खून दूषित हो गया हो या फिर डिफ्थीरिया रोग हो गया हो। सुबह के समय में मन उदास रहता हो, किसी के साथ मिलकर रहने की इच्छा नहीं होती है, बेचैनी अधिक होती है तथा कोई भी कार्य करने का मन नहीं करता है, हर समय कहीं दूर रहने का मन करता है, ईर्ष्यालु स्वभाव हो जाता है। रात के समय में रोगी मानसिक कार्य ठीक प्रकार से कर पाता है। कभी-कभी रोगी को मरने का मन करता है तथा रात के समय में आग लगने का डर लगा रहता है। पागलपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समय को समझने में गड़बड़ी होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रात के समय में जागने पर सिर के आर-पार दर्द होता है, नाक की नलियों में दर्द होता है, सिर के ऊपरी भाग पर दबाव और जलन होती है। सिर में दर्द लहरों के साथ होता है तथा गति करने के बाद अधिक दर्द होता है। शाम के समय में अधिक सिर में दर्द होता है। सिर दर्द के कारण आंखों के आगे काले धब्बे पड़ जाते हैं, आंखों की रोशनी कम हो जाती है तथा चेहरा अधिक पीला हो जाता है। चक्कर आता रहता है। मासिकधर्म शुरू होने पर सिर दर्द से कुछ राहत मिलती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी रोगी में है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- डिफ्थीरिया रोग होने के बाद आंखों की दृष्टि कम हो जाती है, बाहरी पेशियों में दर्द होता है तथा आंखों की पेशियां इतनी अधिक कमजोर हो जाती हैं कि वे किरण-केन्द्रों को नहीं सम्भाल पाती हैं। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि दोनों आंखों को किसी रस्सी द्वारा एक-दूसरे की ओर खींचा जा रहा हो और नासिकामूल पर उसे रस्सी की गांठ मारकर बांध दिया गया हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक मेडिसिन का सेवन करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए कान से सम्बन्धित लक्षण :- गले से लेकर कान के अन्दर तक तेज फाड़ता हुआ दर्द होता है तथा इसके साथ ही गले में जलन होती है। कान की अन्दरूनी और ऊपरी भाग कठोर और खुश्क हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
रोगों में लैकेसिस 200 के उपयोग – Lachesis 200 Uses in Hindi For Face
Lachesis 200 के लिए जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- बेहोशी की समस्या होना या बेहोशी में धीरे-धीरे बकना, जीभ काली तथा खुश्क हो जाती है और बहुत मुश्किल से बाहर निकलती है, जीभ मुंह से बाहर निकालते समय कांपने लगती है, जीभ दान्त के नीचे अटक जाती है। शराबी व्यक्ति की तरह तुतलाना और जीभ का कांपना एक विशेष लक्षण है। बुखार होने के समय में जीभ कांपना लेकिन इसके साथ ही जीभ खुश्क और मैली नहीं होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक मेडिसिन का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए नाक से सम्बन्धित लक्षण :-
नाक से खून बहने लगता है और नथुना संवेदनशील हो जाता है। नजला हो जाता है तथा नाक से पानी जैसा पदार्थ निकलने से पहले सिर में दर्द होता है। परागज दमा (हे-फीवर) रोग होने के साथ ही बार-बार छीकें आती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा उपयोगी है।
Lachesis 200 के लिए चेहरे से सम्बन्धित लक्षण:- चेहरा पीला पड़ जाता है तथा त्रिआननतन्त्रिकाशूल (ट्रीफेशियल न्युरालगिया) हो जाता है तथा इस भाग के बाईं ओर गर्मी महसूस होती है तथा यह गर्मी सिर की ओर भागती हुई महसूस होती है। जबड़ों की हडि्डयों में तेज दर्द होता है तथा यह दर्द ऐसा महसूस होता है कि जैसे वहां का भाग फट रहा हो, जबड़ा बैंगनी, चितकबरा, फूला हुआ और सूजा हुआ हो जाता है और पीलिया रोग हो जाता है, किसी-किसी रोगी को इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही हरित्पाण्डु रोग हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का सेवन करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मसूढ़ें सूजे हुए रहते हैं, कोमल हो जाते हैं और उनमें से खून बहता रहता है तथा उनमें जलन भी होती है और मसूढ़ों के ये सूजे हुए भाग लाल खुश्क हो जाता है तथा मसूढ़ों की कुछ त्वचा दांतों में अटक जाती है। मुंह में छाले पड़ना तथा इसके साथ ही धब्बे पड़ जाते हैं और इसके साथ ही मुंह में जलन भी होती है, कच्चेपन का अहसास होता है, जी मिचलाता रहता है। दांत में दर्द होता है जिसका असर कानों तक फैल जाता है और चेहरे की हडि्डयों में दर्द होता है। इस प्रकार के मुंह से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक मेडिसिन का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले में तेज दर्द होता है तथा गले के दाईं ओर और भी तेज दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर जब तरल पदार्थ को निगलते हैं तो और भी अधिक दर्द होता है।
गले में घाव हो जाता है (परिगलतुण्डिका विद्रधि-क्युंसी ओर पेरीशनसिलर अबसेस)। कान के पास की जड़ों में सूजन आ जाती है तथा वहां की रक्तवाहिनियों में खून जहरीला हो जाता है। कान के बाहरी और अन्दरूनी भाग में खुश्की आ जाती है, अधिक सूजन आ जाती है, डिफ्थीरिया रोग हो जाता है, वहां की झिल्ली धूमिल हो जाती है, गले के आस पास का भाग काला पड़ जाता है और गर्म पानी पीने से गले में दर्द तेज होता है। गले में तेज जलन होती है तथा इसके साथ ही खखारने की आदत पड़ जाती है, गले के अन्दरूनी भाग में बलगम चिपका रहता है जो न ऊपर ही आता है और न ही नीचे ही जाता है।
गले में तेज दर्द होता है, दर्द वाले भाग पर दबाव देने से परेशानियां और भी बढ़ जाती है, छूने से दर्द सहन नहीं हो पाता है तथा गले का भाग बैंगनी और नीला पड़ जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि कोई चीज निगल ली गई हो और उसे निगलना जरूरी होता है, लार या तरल पदार्थो को निगलने से कष्ट बढ़ता है। कान में तेज दर्द होता है तथा गले का ऊपरी भाग ढीली-ढीली महसूस होती है। इस प्रकार के गले से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :-
शराब (ऐल्कोहल) का सेवन करने तथा घेंघा (ओइस्ट्रस) खाने की इच्छा होती है, खाये हुए प्रत्येक पदार्थों से अधिक कष्ट होता है, पेट के अन्दरूनी भाग में दर्द होता है तथा पेट को ऊपर से छूने से और भी तेज दर्द महसूस होता है, भूख तेज लगती है। आमाशय में ऐसा दर्द होता है जैसे दांतों से पकड़कर दबा दिया गया हो, आमाशय में दबाव महसूस होता है लेकिन भोजन करने से कुछ राहत मिलती है और कुछ घण्टे के बाद फिर से दबाव महसूस होने लगता है। रोगी को पाचनतंत्र में कंपन महसूस होती है तथा ठोस चीजें निगलने की अपेक्षा खाली तरल पदार्थ निगलने पर दर्द अधिक होता है। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए मल से सम्बन्धित लक्षण :- कब्ज की शिकायत हो जाती है और मलत्याग करने के बाद मल से बदबू आती है, मलद्वार सिकुड़ा हुआ महसूस होता है और ऐसा लगता है कि जैसे मल बाहर नहीं निकल पायेगा। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी हर बार जब छींकता है या खांसता है तो मलान्त्र के अन्दर नीचे से ऊपर की ओर भाला गाड़ दिये जाने जैसा दर्द होता है। आंतों से खून बहने लगता है और जो खून बहता है वह जली हुई भूसी जैसा लगता है जिसमें काले-काले कण दिखाई पड़ते हैं। मलद्वार फैल जाता है और सिकुड़ जाता है तथा नीला पड़ जाता है, छींकने खांसने से उनमें सुई चुभने जैसा दर्द होता है, मलत्याग करने की इच्छा तो होती है लेकिन मलत्याग नहीं हो पाता है। इस प्रकार के मल से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का प्रयोग करना चाहिए।
पेट से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत प्रदेश संवेदनशील हो जाता है तथा कमर के चारों ओर के भाग से कोई चीज छू जाये तो वह सहन नहीं हो पाता है। पेट फूला हुआ होता है तथा संवेदनशील हो जाता है और पेट में दर्द होता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का सेवन करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए मूत्राशय से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब लगभग काली, लसीली, गहरी रंग की और अनियमित होती है, मूत्रनली के आगे के भाग में चुभन और दर्द महसूस होता है, मूत्राशय पर ऐसा महसूस होता है जैसे कि गोला रखा हुआ है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- मासिकधर्म से सम्बन्धित समस्या हो जाती है तथा धड़कन की गति भी ठीक प्रकार से नहीं चलती है और गर्मी तेज लगती है, रक्तस्राव होता है, सिर के ऊपरी भाग में तेज दर्द होता है, बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं तथा कपड़े के दबाव से और भी अधिक समस्या बढ़ने लगती है। स्राव बहुत कम मात्रा में होता है और बहुत कम समय के लिए होता है और स्राव होते ही सिर में दर्द कम हो जाता है और जब स्राव नहीं होता है तो दर्द अधिक होता है। बाईं डिम्बग्रन्थियों में सूजन आ जाती है और उसमें अधिक दर्द होता है तथा वे कठोर हो जाती है। स्तन में जलन होने लगती है और स्तन नीला हो जाता है, गुदास्थि और त्रिकास्थि में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब बैठी हुई अवस्था से उठता है तो दर्द और भी तेज होता है। मासिकधर्म हमेशा के लिए बंद होने के समय में कई प्रकार के रोग होना जैसे- सिर में दर्द होना, जलन होना, रक्त की अधिकता और खून के संचरण में दौरा पड़ना, पागलपन की अवस्था उत्पन्न होना।
मासिकधर्म के शुरू होने पर स्राव काले रंग का होता है, बांये डिम्बाशय में दर्द और सूजन या बांयी तरफ से आरम्भ होकर दाहिनी तरफ फैलती है, डिम्बाशय में सख्ती आना तथा पक जाना। गर्भाशय बहुत नाजुक होता है रोगिणी इसे किसी को छूने नहीं देती, जरा सा कपड़ा छू जाने पर बेचैनी महसूस होती है, मासिकधर्म ठीक समय पर नहीं आता है, थोड़े समय तक स्राव होना तथा बहुत कम होना। रोगी को जब स्राव होने लगता है तो उसका दर्द कम हो जाता है। इस प्रकार के स्त्री रोग से सम्ब्न्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी स्त्री में है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं।
Lachesis 200 के लिए पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- संभोग करने की अधिक उत्तेजना होती है तो इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी का इलाज करने के लिए लैकेसिस दवा का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- सांस लेने वाली नली के ऊपर वाले भाग को छूने से दर्द महसूस होता है, लेटने पर दम घुटने लगता है, विशेष रूप से जब गले के चारों ओर कोई चीज लिपटी हुई हो तब, रोगी बिस्तरे को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाता है और खिड़की खोलने के लिए दौड़ता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि कोई चीज गर्दन से दौड़ती हुई स्वरयंत्र के अन्दर चली गई हो, जिसके कारण रोगी को ऐसा लगता है कि सांस गहरा लेना चाहिए। हृदय के भाग में तेज ऐंठन होती है तथा सांस से सम्बन्धित कई प्रकार की परेशानियां होने लगती हैं।
सूखी खांसी हो जाती है और इसके साथ ही दम घुटने के दौरे पड़ने लगते हैं, गले में सुरसुराहट होती है। स्वरयंत्र अत्यधिक संवेदनशील हो जाती है, स्वरयंत्र पर दबाव देने पर या सोने के बाद खुली हवा में जाने से स्वरयंत्र से स्राव होने लगता है, जैसे ही नींद आती है वैसे ही श्वास बंद हो जाता है, जिसके कारण बहुत अधिक परेशानी होती है, स्वरयंत्र को छूने पर दर्द महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ऐसा महसूस होता है कि गले के अन्दर कुछ अटक गया है जो ऊपर से नीचे की ओर गतिशील रहता है और साथ ही थोड़ी-थोड़ी खांसी भी आती रहती है। इस प्रकार के श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- मासिकधर्म के शुरू होने के समय में धड़कन की गति अनियमित होने के साथ ही बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं जिसके कारण दिल धड़कने लगता है और साथ ही अधीरता बनी रहती है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- गुदास्थि (कोकिक्स) के नाड़ियों में दर्द होता है तथा बैठने से उठने की स्थिति में अधिक कष्ट होता है जिसके कारण शांत बैठे रहना पड़ता है, गर्दन में दर्द होता रहता है, ग्रीवा-प्रदेश में अधिक दर्द होता है, कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि पीठ से बाहों, टांगों, आंखें आदि की ओर दर्द गतिशील है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए गर्भाशय से सम्बन्धित लक्षण :- गर्भाशय में दर्द होता है जो मासिकस्राव और रक्तस्राव होने पर ठीक हो जाता है लेकिन पेट पर कोई भारी चीज रखने पर दर्द असहनीय हो जाता है, गर्भाशय पर किसी प्रकार का दबाव या छुआ जाना, सहन नहीं होता है इसलिए पेट पर से भारी कपड़े हटा देने पड़ते हैं क्योंकि कपड़ों के कारण नाड़ियों की उत्तेजना पैदा हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का सेवन करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए फेफड़ों से सम्बन्धित लक्षण :-
फेफड़ों में जलन होती है और आन्त्रिक ज्वर की अवस्था उत्पन्न हो जाती है, फेफड़ों में पीब बनने लगता है, पसीना अधिक आता है, कफ के साथ खून तथा पीब आता है, त्वचा तथा हडि्डयों में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- गृध्रसी (साइटिका) रोग अर्थात गठिया का रोग होना तथा दाईं ओर लेटने से आराम मिलता हो, जांघ के अन्दरूनी भागों में दर्द होता है तथा कुछ समय के बाद जलन होती है। कण्डरायें (टेंडस) छोटी पड़ जाती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना लाभकारी है।
Lachesis 200 के लिए नींद से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर में खून की जहरीली अवस्था उत्पन्न होने तथा डिफ्थीरिया और अन्य रोग की अवस्था उत्पन्न होने पर रोगी को अधिक नींद आती है, सोते-सोते रोगी अचानक चौंक पड़ता है, नींद आती है, लेकिन सो नहीं सकता, शाम को चाहते हुए भी नींद नहीं आती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए यकृत से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत ऐसा हो जाता है जैसे शराबियों का हो जाता है तथा इसके साथ ही यकृत में तेज दर्द होता है, यकृत में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं, जैसे फोड़ा तथा घाव होना। यकृत में दर्द बराबर नहीं होता रहता है, पेट में दर्द अधिक होता है, दर्द हर समय रहता है तथा खाना खाने के बाद दर्द अधिक होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का उपयोग करना लाभदायक है।
Lachesis 200 के लिए ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- पीठ पर ठण्ड महसूस होती है, पैर बर्फ जैसे ठण्डे पड़ जाते हैं, शरीर की त्वचा से गर्म पसीना निकलता है और बुखार भी हो जाता है, कभी-कभी बुखार ठीक हो जाता है तथा फिर अम्ल पदार्थों का सेवन करने से फिर से बुखार हो जाता है, वसन्त ऋतु में हर बार सविराम ज्वर हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस होम्योपैथिक दवा का प्रयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए बवासीर रोग से सम्बन्धित लक्षण :-
बवासीर के मस्से खांसते या छींकते समय दर्द होने के साथ ही मलद्वार से बाहर निकल आते हैं, गुदा में तेज दर्द होता है, ऐसा महसूस होता है कि मलद्वार बंद हो गया है, बेचैनी अधिक होती है, मलत्याग सही से नहीं होता है, कब्ज की समस्या अधिक हो जाती है, मलद्वार ऐसा लगता है जैसे जला हुआ हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का उपयोग करना चाहिए।
Lachesis 200 के लिए चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :-
शरीर से गर्म पसीना निकलता है, त्वचा का रंग बैंगनी तथा नीला पड़ जाता है, फोड़े-फुंसियां त्वचा पर हो जाती है जो जल्दी ठीक नहीं होती है, फोड़ें के चारों ओर नीले रंग के दाग पड़ जाते हैं, गहरे रंग के छाले पड़ जाते हैं, बिस्तर पर सोने से होने वाले घाव तथा इन घाव के किनारे काले रहते हैं, नीली काली सूजन पड़ जाती है, चीर-फाड़ करने के कारण होने वाले घाव। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण किसी रोगी को हो तथा इसके साथ ही अधिक उदासीपन होता है। बुढा़पे के समय में होने वाले त्वचा पर घाव, गिल्टियां, कोशिकाओं की सूजन तथा स्फीत व्रण (वेरीकोस अल्सर)। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का प्रयोग करना अधिक लाभदायक होता है।
वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- सोने की अवस्था में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। वसन्त ऋतु में, गर्म पानी से नहाने से, दबाव या सिकुड़न से, गर्म पेय पदार्थों से और आंखें बंद करने की स्थिति में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।
शमन (एमेलिओरेशन) :- मासिकधर्म के समय में स्राव होने पर, गर्म सिकाई करने से रोग के लक्षण नश्ट होने लगते हैं।
दवा का अन्य दवाओं से सम्बन्ध :- मासिकधर्म से सम्बन्धित रोग को ठीक करने के लिए कोटिलेडन होम्योपैथिक मेडिसिन का उपयोग करते हैं लेकिन ऐसे ही लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का उपयोग कर सकते हैं। अत: कोटिलेडन होम्योपैथिक मेडिसिन के कुछ गुणों की तुलना लैकेसिस 200 से कर सकते हैं।
दायां जबड़ा सूजा हुआ और दर्द नाक हो, ऐसा घाव जिसके कारण से दर्द अधिक हो रहा हो, सिर में दर्द तथा ऐसा दर्द होना जैसा फटते हुआ होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए नेट्र-म्यूरि, नाइटि-एसिड, कोटेल तथा एम्फिसबीना होम्योपैथिक मेडिसिन यों से कर सकते हैं, ऐसे ही लक्षणों को ठीक करने के लिए लैकेसिस 200 का उपयोग कर सकते है अत: नेट्र-म्यूरि, नाइटि-एसिड, कोटेल तथा एम्फिसबीना होम्योपैथिक मेडिसिन यों के कुछ गुणों की तुलना लैकेसिस 200 से कर सकते हैं।
प्रतिविष:- आर्से, मर्क्यू, गर्मी, सुरासार तथा नमक आदि का उपयोग लैकेसिस 200 के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
पूरक:- कोटेलस, कैस्कावेल्ला बहुधा लैकेसिस के रोगसाधक कार्य को सम्पन्न करती है, लाइको, हीपर, सैलामैण्ड्रा।
प्रतिकूल :- असेटिक एसिड, कार्बो-एसिड।
मात्रा (डोज) :- लैकेसिस 200 की आठवीं से 200वीं शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। इसकी मात्राओं को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए।